Ananya Pandey

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अब न होगा तुम पर विश्वास-05-Mar-2022

अब न होगा हमसे तुम पर विश्वास

छलना आदत है तुम्हारी,
दिल से खेलना आदत है तुम्हारी,
हम तो तुमसे दिल लगा बैठे दिल को तोड़ना आदत है तुम्हारी,
अब न होगा तुम पर विश्वास

आज फिर उसी मोड़ पर
तुमसे मिलना
ठहरे वक़्त को जैसे रफ़्तार देना
कहीं ऐसा न हो 
क़दम जो उस पल सम्भल गये थे
आज बहक जाये
जब कुछ छूटता है हाथों से
पीछे एक कसक बन
अधूरापन रह जाता कभी न पूरा  होने के लिए

एक सपना एक चाहत और
कुछ अधूरी ख्वाइशें
अब बस हम है तन्हाई है
और दूर आसमाँ पर
टुकुर-टुकुर ताकता वह इकलौता चाँद है
अक्सर रातों में
ऊँघती हुई नींद को अलगनी पर टांग 
मैं चला आता हूँ छत पर 
तुम्हारे ख़्याल साथ लिए चाँद से गुफ़्तगू करने

जानती हो--
अक़्सर बातों ही बातों में वह (चाँद)
मुझसे कहता है
कोई संदेशा हो तो कहो मैं पहुंचा दूँगा
क्योंकि इसी पल 
किसी दूसरे शहर में तुम भी अकेली छत पर 
उससे मेरी बातें कर रही हो
बस दिल झूम उठता है ये सोचकर
दूर सही आज भी तुम साथ हो

बाकी क्या कहता उससे
कह दिया --
उससे कहना खुश रहा करे
यूँ रातजग्गे न किया करें 
आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़ जाएंगे
पता है ना हम इन्हीं आँखों मे 
उलझ, अपना दिल हार आये थे कभी
बाकी मिलने की अब तलब नहीं 
क्योंकि--तुम साथ होती हो
अच्छा !अब चलता हूँ
फिर मिलेंगे,
अब न होगा हमसे तुम पर विश्वास।

तुम्हारा........( कहने का हक़ है ना)
-------------------
प्रिया पाण्डेय 

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2 Comments

Swati chourasia

05-Mar-2022 07:56 PM

Very beautiful 👌

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Inayat

05-Mar-2022 06:16 PM

बहुत खूब

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